Thursday, 5 June 2014

आशा की डोर

आशा  की  डोर  पकड़ विचरण  कर नभ में तू ऐ  मन
उन्मुक्त्त  गगन  में  उड़ता  चल  जैसे उड़े चपल पवन

जीवन  की  गति  की  भाँति  ऊपर  नीचे  तू   जायेगा
दुःख   उपरान्त  मिले  जब   सुख  वैसा आनंद पायेगा

नीचे  जब   तू  आएगा  खींचेगी  डोर   तुम्हे    ऊपर
ऊपर नभ के  पहुचेगा    आशा   संगिनी  रही अगर

आशा  की   डोर  यदि  छूटी  उड़ने  की  इति होगी
लौटेगा    नीचे   निराश  सपने   अपूर्ण  रह जायेगीं

सोपान  सफलता  की  आशा  जो  चढ़ा वह सफल हुआ
जिससे  भी  रूठी आशा  वह  जीवन में  सबकुछ खोया

न  शान्ति मिले चिर सुख से  न अविरल दुःख कोई चाहे
आंकक्षाये  पूर्ण  तब होतीं  जब   जीवन  में  आशा  आये

मानव  जीवन पाये  हो  मन  को न  कभी निराश करो
बन आशावान कर्म करो  जिससे यह जीवन ब्यर्थ न हो

No comments:

Post a Comment