उलझन
क्यों है इतना हर पल उलझन।
सुलझ न पाये जो जीवन भर॥
एक समस्या जब तक सुलझे।
कठिनाई नई आकर उलझे॥
क्रम सदा यह चलता रहता।
संघर्ष सजीव आजीवन रहता॥
ऐसे पल कुछ ही होते हैं।
मन को जो हर्षित करते हैं॥
फिर सोचूँ क्यों दुखी यह मन है|
मूल प्रगति की तो यह उलझन है||
सुलझ न पाये जो जीवन भर॥
एक समस्या जब तक सुलझे।
कठिनाई नई आकर उलझे॥
क्रम सदा यह चलता रहता।
संघर्ष सजीव आजीवन रहता॥
ऐसे पल कुछ ही होते हैं।
मन को जो हर्षित करते हैं॥
फिर सोचूँ क्यों दुखी यह मन है|
मूल प्रगति की तो यह उलझन है||
उलझन यद्यपि दुःख देती है।
प्रगति की वह निमित्त बनती है॥
प्रज्वलित करती है उद्यम की अग्नि।
नये खोज की बनती है जननी॥
विज्ञान प्रौद्योगकी करती हैं प्रगति।
नई औषधियां कष्ट हैं हरती॥
उपकरणों की होती है रचना।
सहज होता जीवन यापन करना॥
समस्यायें जन्मातीं हैं नए विचार।
मानव क्षमता करती तब चमत्कार॥
प्रकृति विजय का होता आह्वान ।
विश्व उन्नति का बनता कीर्तिमान॥
प्रगति की वह निमित्त बनती है॥
प्रज्वलित करती है उद्यम की अग्नि।
नये खोज की बनती है जननी॥
विज्ञान प्रौद्योगकी करती हैं प्रगति।
नई औषधियां कष्ट हैं हरती॥
उपकरणों की होती है रचना।
सहज होता जीवन यापन करना॥
समस्यायें जन्मातीं हैं नए विचार।
मानव क्षमता करती तब चमत्कार॥
प्रकृति विजय का होता आह्वान ।
विश्व उन्नति का बनता कीर्तिमान॥
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