Saturday, 9 June 2018

अंजान  जग  के  दोषों  से, कलियाँ  जब   मुस्कातीं  हैं    
भवरें करते उन्हें आलिंगन, प्रकृति नव रचना रचती  है 
निर्मित  होती  है नई आकृति और उभरते  हैं नए  स्वर 
सागर के उस पार क्षितिज पर बीत गया एक और प्रहर
                                x x x  


जो  कुछ  दिया  था आपने ,
जग  को वह अर्पित  किया |
बची   है  अब यह  जिंदगी ,
जो आपको समर्पित किया || 
                                x x x 

जीवन  के  प्रिय  पल ,
सारे अब बिसर गए | 
पल जो   दुखदाई थे ,
सारे अब मुखर हुए || 

                              x x x 

हो  रहा  अभी जो  कुछ  है, बदले  शायद अगले क्षण में,
जो चाहो आगे मिले न मिले, जी लो भरपूर  इस पल में | 
समय अभी  का  है  अनमोल, देखो कहीं न जाये बिखर,
सागर के  उस पार  क्षितिज पर  बीत एक  और   प्रहर ||  
                            x x x 
समय संग जो चले नहीं,   सपने उसके हैं  जाते बिखर ,
                          x x x   
जीवन  की  है  यही दशा
बदलते  रहते  रंग   सदा
हो रहा अभी जो  कुछ  है
अगले पल होता वह विदा 
                          x x x  

सफल कर्म का मन्त्र यही,  
उद्देश्य  पावन निर्मल  हो
स्वार्थ निहित न हो उसमें 
ईश्वर   को  समर्पित  हो 

निर्मल मन से कर्म  करो
कर्म करो बस कर्म करो||
 
दुख न तुम्हे  उदास करे। 
हसकर  सदा उसे झेलो|। 
सुख दुख जीवन का हिस्सा है। 
जो मिलता है उसको लेलो||

कान्हा ने है कहा यही,
कर्म करो बस कर्म करो||
फल की इक्च्छा उचित नही। 
कर्म करो बस कर्म करो॥ 
     

नई चेतना जब लहराए। 
जागृति जीवन  में आए||  
नई सोच हो नया विहान। 
मानव  तब बने महान ||
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 साथ निभाया अब तक  तुमने 
 फिर छोड़ अकेला क्यों  चली
मैं भी चलने को तैयार खड़ा  था 

चले   दूर तक  जीवन  पथ पर 
सुख दुःख  हमने मिल कर झेले 
हर  निर्णय   साथ  लिए  हमने
कर्म  किये , सबसे   प्रेम   किये 

जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर
साथ     तुम्हारा   छूट      गया 
जो बंधन सोचा था जन्मो का है 
सहसा   ही    वह    टूट     गया
 
जीवन पथ पर साथ चले हम 
सारे   निर्णय   संग      लिए 
सुख  दुःख  साथ झेला  हमने 
कर्म  किये , सबसे प्यार किये
जीवन  के अंतिम  पड़ाव पर 
साथ  तुम्हारा   छूट      गया 
जो बंधन सोचा जन्मो का है 
सहसा  ही  वह   टूट    गया
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मिले एक  से   एक  तो बने नया संसार 
बिछड़े दो से एक तो बिखरे वही संसार  
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सत्य वचन कहता हूँ यारों
सुनो सभी अब मेरी बात
वीरों के मिलते फूल नहीं अब
चढ़ते अब वो नेताओं के माथ
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सब कुछ गंवा के होश में आये तो क्या होगा
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 ये राहें  ले ही जायेंगी मंजिल तक हौसला रख
कहीं सुना है कि अँधेरे ने सवेरा होने ना दिया
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 नियति संचालित करती है मेरे सारे काम । 
 मैं  बिमूढ़ अज्ञानी कहता हूँ "मैंने किया है" ॥
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गाथा अपनी  तुझे  सुनाता हूँ
जिन मोड़ों से होकर  गुजरा, उन्हें तुम्हें बताता हूँ
 गाथा अपनी  तुझे  सुनाता हूँ
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