Monday, 19 April 2021

 

[This page provides access to all poems written by me in my mother language Hindi. My effort in writing these poems is of an amateur and I don't claim them to be error free.]

 

लघु  कविताऐं 

प्यार के रंग से भरो पिचकारी
स्नेह से रंग दो दुनिया सारी
रंग न जाने जात  न बोली
मुबारक हो सबको प्यारी होली
       ------ XXXX ------- 

प्रयत्नशील हो जाओ उसके लिए
जिस  लक्ष्य को  तुमने  पाना है
लघु  होती है जीवन की अवधी
अवसर  फिर   नहीं  आना  है
     ------ XXXX -------               


शुद्ध आचार और शुद्ध विचार 
सफल जीवन का यही आधार 
     ------ XXXX ------- 
दुःख ना करो इस जीवन का 
 अवसान  इसका  निश्चित है
जो  सुकर्म  किया है   तुमने
परिणाम उसके अपरमित हैं 
ढेरों आशीष मिला है तुमको 
अवसाद न होगा जब जाओगे 
जो  प्यार  दिया है  लोगों  ने 
मर  कर   अमर  हो   जाओगे
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दुःख ना करो इस जीवन का 
 अवसान  इसका  निश्चित है
सुकर्म करोगे  जो  दुनिया  में  
फल  उसके   अपरमित     हैं 
ढेरो  आशीष   मिलेगें   तुम्हे  
अवसाद न होगा जब जाओगे 
जो  प्यार  मिलेगा  लोगों  से 
मर  कर   अमर  हो   जाओगे
   ------ XXXX ------- 
नई चेतना जब लहराए।  
जागृति जीवन  में आए||  
नई सोच हो नया विहान।  
मानव  तब बने महान || 
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बीता प्रहर

सागर के उस पार क्षितिज पर बीत गया एक और प्रहर
लघु हुई जीवन की रेखा, बने अतीत अनेकों  प्रिय  क्षण
इतिहास  के  पन्नो पर, अंकित  हुए नए कुछ   विवरण
जग  से  मिला जो अनुभव जीवन का वह  बना धरोहर ॥ सागर के …।
पिछले  प्रहर   की  बातें,  पुरानी   हुईं  इस  क्षण  में
नए सिरे से करना होगा जो चाहिए हमें अब  इस पल में  
वह सब नया  करना होगा जो चाहिए अब इस पल में
समय संग   बदलना होगा  वरना सपने जायेंगे  बिखर ॥ सागर के …। 
हो  रहा  अभी जो  कुछ  है,  बदले  शायद अगले क्षण में 
जो चाहो आगे मिले न मिले, जी लो पूर्णतया इस पल में 
समय संग जो   नहीं चले  सपने उसके  जाते हैं     बिखर ॥ सागर के …

अंजान जग  के दोषों  से, कलियाँ  अभी भी मुस्कातीं  हैं    
भवरें उन्हें करते आलिंगन,  प्रकृति नव रचना रचती  है 
निर्मित  होती  है नई आकृति और उभरते  हैं   नए  स्वर ॥ सागर के …
सरिता  के  बहुतेरे   जल  सेतु  के  नीचे   हुए  प्रवाहित
बदली दुनिया  लेकिन अवगुण अपने  में  किये समाहित 
भूख, रोग  और  अशांति  अब   भी  बरपा  रहे     कहर ॥ सागर के …
प्रहर   कई    बिते  पथ  पर  लक्ष्य  अभी  भी दूर   कहीं
चलना  है  कब  तक  युहीं  पथिक को  यह  ज्ञात नहीं
एकाग्र किये मन शक्ति बटोरे बढ़ना है  उसे  निरन्तर ॥ सागर के …।  


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बीता प्रहर

सागर के उस पार क्षितिज पर बीत गया एक और प्रहर
लघु हुई जीवन की रेखा, बने अतीत अनेकों  प्रिय  क्षण
इतिहास  के  पन्नो पर, अंकित  हुए नए कुछ   विवरण
जग  से  मिला जो अनुभव जीवन का वह बना धरोहर ॥ सागर के …।
पिछले  प्रहर   की  बातें,  हुईं    पुरानी   इस  क्षण  में
वह सब नया  करना होगा जो चाहिए अब इस पल में
समय संग   बदलना होगा  वरना सपने जायेंगे  बिखर ॥ सागर के …।  
वह  सब  करना  होगा  जो  चाहिए  अब इस  पल  में  
वह बात गई जो बीत गया, नया कुछ अब करना होगा 
काम अधूरे पिछले क्षण के, करना होगा फिर इस पल में 

हो रहा अभी तक जो कुछ  था,  बदलगया सब इस  क्षण में 
जो चाहो आगे शायद न मिले, जीलो पूर्णतया इस पल में 
समय  संग  चलते  रहो  वरना  सपने  जायेगें      बिखर ॥ सागर के … 
कलियाँ अब विकसित होकर उन्मुख हैं यौवन की ओर 
मिलन तत्पर उन्मद  भवरें  झूम  रहे  है   भाव बिभोर
मिलन तदअंतर निर्मित होगें  नई आकृति और नए स्वर ॥ सागर के …।
सरिता  का अतिशय  जल  सेतु  के नीचे   हुआ प्रवाहित
दुर्गम पथ पर चलती धारा बाधाओ  से हुए  अप्रभावित
सिंधुमिलन की लिए  लालसा अनवरत हो  रही अग्रसर ॥ सागर के...। 
प्रहर   कई    बिते  पथ  पर  लक्ष्य  अभी  भी  दूर   कहीं
चलना  है  कब   तक   युहीं  पथिक  को  यह ज्ञात  नहीं
एकाग्र किये मन शक्ति बटोरे  बढ़ना  है  उसे    निरन्तर ॥ सागर के …।  


जीवन  की   रहती   यही दशा । बदलते  रहते हैं  रंग  सदा ।। 
भरती उड़ान कभी नभ से ऊँची । फिर आकर धरती को छूती।। 

    
 मेहनत बिन मिले न कुछ जग में,  जग की है रीत यही 
जो चाहो आगे मिले न मिले, जीलो पूर्णतया इस पल में 
समय संग  जो  नहीं  चले  सपने  उसके जाते  हैं  बिखर ॥ सागर के …

  
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उलझन  

क्यों  है  इतना  हर  पल उलझन।
सुलझ  न  पाये  जो  जीवन  भर॥
एक   समस्या  जब   तक   सुलझे।
कठिनाई    नई    आकर    उलझे॥
क्रम   सदा   यह    चलता  रहता।
संघर्ष   सजीव  आजीवन   रहता॥
 ऐसे   पल    कुछ     ही   होते  हैं।
 मन   को  जो   हर्षित   करते   हैं॥   
उलझन   यद्यपि   दुःख   देती   है।
प्रगति  की वह  निमित्त  बनती है॥
प्रज्वलित करती है उद्यम की अग्नि।  
नये  खोज  की  बनती  है  जननी॥
विज्ञान प्रौद्योगकी करती हैं प्रगति।
नई  औषधियां   कष्ट   हैं    हरती॥  
उपकरणों   की  होती  है   रचना।
बनता सहज जीवन यापन करना॥    
समस्यायें जन्मातीं हैं  नए विचार।
मानव क्षमता करती तब चमत्कार॥
प्रकृति  विजय  का  होता  आह्वान ।  
उन्नति का बनता नया कीर्तिमान॥

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आशा की डोर

आशा  की  डोर  पकड़ विचरण  कर नभ में तू ऐ  मन
उन्मुक्त्त  गगन  में  उड़ता  चल  जैसे उड़े चपल पवन

जीवन  की गति की भाँति  ऊपर नीचे तू चलता चल 
दुःख  उपरान्त मिले  जो  सुख  आनंद वैसा लेता चल 

नीचे   जब भी आएगा  खींचेगी   डोर   तुम्हे    ऊपर
नभ  ऊपर  तक  पहुचेगा   आशा  संगिनी  रही अगर

आशा की  डोर  यदि  छूटी उड़ने  की वह  इति  होगी
लौटेगा  नीचे  निराश  सब  सपने  अपूर्ण रह  जायेगीं

सोपान  सफलता  की आशा  जो चढ़ा वह सफल हुआ
जिससे  भी  रूठी आशा  वह जीवन में सबकुछ खोया

न मिले शान्ति चिर सुख से न अविरल दुःख कोई चाहे
आंकक्षाये पूर्ण तब होतीं  जब  जीवन  पर  आशा छाये 

मानव  जीवन पाये  हो  मन  को न  कभी निराश करो 
बन आशावान कर्म करो  जिससे यह जीवन ब्यर्थ न हो

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चिर यात्रा

दूर  निकल  आया  हूँ पथ पर।
अविचलित   बिनभ्रमित हुए॥
रुका कुछ क्षण उस पड़ाव पर।
जहाँ नियति ने  पथ रोक दिए॥

शक्ति  बटोरा  आगे  कर  पग।
बढ़  चला  पुनः लक्ष्य की ओर॥
जीवन  के  कई  पथ  से गुजरा।
अपरिमित अनुभव ज्ञान बटोर॥

लक्ष्य  अगोचर   अंतहीन  पथ।  
चलते  हुए  थका अब  तनमन॥   
ज्ञात  नहीं कब तक  है चलना।
शायद जब तक है  यह  जीवन॥

विश्राम क्षणिक मिलेगा उस दिन।
जीवन स्पंदन जब शिथिल होगा।।   
तैयारी   फिर   करनी    होगी।  
चिर  यात्रा   आरम्भ    करूँगा ॥

जीवन विहीन जब  हो  जाऊंगा ॥  
गति विहीन   जब  हो  जाऊंगा ॥   
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ईश्वर अवतरण

धरती  पर  जब पाप बढ़े।     
नीति  धर्म की हो   हानि॥ 
तब होते ईश्वर अवतरित।    
यह   कृष्ण  की है  वाणी॥ 

प्रभु रचते दैविक लीलाएं।     
पापमुक्त   करते   धरती ॥   
धर्मयुक्त  बनता   जीवन।     
सुसंस्कृति विकसित होती॥
  
शांति विराजती  है सर्बत्र।  
जीवन  सुखमय  होता  है॥
विज्ञान कला प्रगति करती।  
राम राज्य फिर आता है॥

ये  वेद  पुराणों  की बातें।     
कलियुग में क्या सच होगी॥
पाप  मिटेगा क्या जग से।      
क्या पुन्यमयी धरती होगी||

व्याप्त है आज सकल जग में।   
भ्रष्टाचार    और    दुराचार॥
पापलिप्त  हुआ  है   जीवन।    
कलंकित हैं आचार विचार॥

धर्मगुरु   पथभ्रष्ट   हुए   हैं ।     
राजनायक      भ्रष्टाचारी॥
माँ   बहनों   की   इज़्ज़त।     
लूट  रहें   हैं     दुराचारी॥

कराह  रही   है   जनता।      
महंगाई  के   बोझ  तले॥
दिख रहा नही है मुक्तिमार्ग ।     
जिससे   यह  कष्ट   टले॥

कर रहे याचना अब सभी।   
सत्य  वाणी गीता की हो॥  
ईश्वर  का  हो  अवतरण।    
जन   जीवन  सुखमय हो

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 भारत कैसे बने महान  

रण दुन्दुभि जब बजे। 
सुप्त शक्तिया जग उठे |।  
नई चेतना लहराए।  
जागृति सब में आए|| 

नई सोच हो नया विहान।  
भारत तब बने महान || 

नौनिहाल को मिले दुलार|  
दुग्ध और संतुलित आहार|।  
 आनंदित वह पले बढ़े।  
दुख़दर्द से कोसो  दूर रहे || 

विद्या का मिले वरदान।  
भारत तब बने महान॥  

जाति भेद का हो विनाश।  
सांप्रदायिकता का सर्वनाश॥  
कुशासन व भ्रष्टाचार घटे।
ज़ुल्म और अत्याचार मिटे॥

माँ बहनो का हो सम्मान।
भारत तब बने महान॥

वैज्ञानिक सोध में हो प्रगति ।  
कला  साहित्य में नई जागृति॥
औद्ध्योगिक क्रांति आए।
कृषि उत्पादन बढ़ जाए ॥  

वाणिज्य व्यापार में हो उत्थान।
जन जन का हो कल्याण।
भारत तब बने महान॥

जनता जागरूक बने।
कर्तब्यो को पहचाने॥
देश पर जब विपदा आए।
सेवा में सब जुट जाए ॥

मिल कर बढ़ाए देश का मान।  
भारत तब बने महान॥

सैन्यशक्ति हो अति प्रबल।
हो शत्रु की सब चाल विफल॥  
देशो में फैले भाईचारा।
सतत रहे यह प्रयास हमारा॥

देश पर हो सबको अभिमान।
उन्नत भाल शरीर बलवान।
भारत तब बने महान॥ 

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मेरी लघु कविता - कर्म

सफल जीवन का मर्म यही | 
कर्म  करो  बस  कर्म  करो || 

दिशा एक निश्चित कर लो।  
पथ पर उस ओर बढ़े चलो ।| 
न हारो  न  थक कर सोओ। 
न  बाधाओ  से  घबड़ाओ|| 

मंज़िल  स्वयं  मिले  सही| 
कर्म  करो  बस कर्म करो|| 
  
उद्‍गम से निकली सरिता।  
अविरल  बहती  जाती  है|।  
लक्ष्य  एक   लिए    हुए॥  
सागर में जा मिल जाती है|| 

सफल सदा है मंत्र  यही, 
कर्म करो बस कर्म करो|| 

दुख न तुम्हे  उदास करे।  
हसकर  सदा उसे झेलो|।  
सुख दुख जीवन का हिस्सा है।  
जो मिलता है उसको लेलो|| 

कान्हा ने है कहा यही, 
कर्म करो बस कर्म करो|| 

पथ  सूना  और निर्जन हो। 
न  संगी  हो  न साथी  हो॥ 
निर्भय   हो   बढ़ते  जाओ ।  
 संकल्प  सजग  पूर्ण  करो॥ 
  
सफलता का है मर्म  यही । 
कर्म करो बस कर्म करो॥  

कृष्ण  ने  भी  कहा  यही, 
फल की चिंता उचित नही। 
कर्म करो बस कर्म करो॥

Wednesday, 7 October 2020

 

एक व्यक्तिगत मानव अस्तित्व एक नदी की तरह होना चाहिए - पहली बार में छोटा, संकीर्ण रूप से अपने बैंकों के भीतर, और 
अतीत की चट्टानों पर और झरने के ऊपर दौड़ते हुए। धीरे-धीरे नदी चौड़ी हो जाती है, किनारे टूट जाते हैं, पानी अधिक
 शांत रूप से बहता है, और अंत में, बिना किसी दृश्य विराम के, वे समुद्र में विलीन हो जाते हैं, और दर्द रहित रूप से 
अपने व्यक्ति को खो देते हैं।
 
अस्तित्व  मानव का  होता है नदी की तरह 
 पहले संकीर्ण, अतीत की  चट्टानों पर से गुजरती है  
धीरे धीरे किनारे टूटते है और नदी चौड़ी हो जाती है 
 स्वभाव तब बदलता है और शान्त हो  बहने लगती है 
अंततः विलीन हो समुंद्र में व्यक्तित्व अपना खो देती है  
 
 
 

 

Sunday, 13 September 2020

अज:

आशा  

ज़िंदगी की दौड़ में, चाहे थोड़ा पीछे दौड़ो !
छोड़ो कुछ भी मगर, तुम आशा कभी ना छोडो.
आशा पर दुनिया कायम है, आशा से जीता इंसान,
आशा है जीवन की ज्योति, है यही मन का विज्ञान.
हो जाये हवा यदि प्रतिकूल, उसका रुख तुम मोड़ो,
छोडो कुछ भी तुम मगर, आशा कभी ना छोडो !!
आशा से तो बन जाते हैं बिगड़े सारे काम,
आशा थी शबररी को, जिससे मिले उसे श्री राम ,
हो जायेगे सपने पूरे आशा से अपना नाता जोड़ो ,
छोडो कुछ भी तुम मगर ,आशा कभी ना छोडो !!
आशा सबका मूल धर्म है, चाहे गीता हो या कुरान ,
आशा से तो मिल जाते है, पथर में भगवान ,
आशा की बस एक किरण से, भोग विघन करोड़ो,
छोडो कुछ भी तुम मगर, आशा कभी ना छोडो !!
अश्वस्थ न हो की  श्रम द्वारा  पूरे  होंगे  सारे  सपने
 कुछ बिखरेगें
ज़िंदगी की दौड़ में, चाहे थोड़ा पीछे दौड़ो !
आशा और श्रम करना कभी ना छोडो.
आशा पर दुनिया कायम है, आशा से जीता इंसान,
आशा है जीवन की ज्योति, है यही मन का विज्ञान.
हो जाये हवा यदि प्रतिकूल, उसका रुख तुम मोड़ो,
छोडो कुछ भी तुम मगर, आशा कभी ना छोडो !

  

 

Monday, 10 August 2020

आपका जीवन एक जलप्रपात की तरह विकसित हुआ है, आपने छोटे से आरम्भ कर गति प्राप्त की है। अपने रास्ते खुद ही बनाये  और आगे बढ़े, रास्ते में आने वाली प्रत्येक  चुनौती का सामना करते हुए। 
अब आप ज्ञान का फव्वारा देने वाले जीवन हैं। 

 
 
 
Your life has evolved like a waterfall, you began small and gained momentum. You carved out your own path and forged ahead, beating any challenges that came your way. Now you are a life giving fount of knowledge.  
नास्ति मातृसमा छाया
नास्ति मातृसमा गतिः|
नास्ति मातृसमं त्राणं
नास्ति मातृसमा प्रिया ||
            - स्कंद पुराण

माता के समान कोई छाया नहीं, माता के समान कोई सहारा नहीं. माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं।


माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥

English Translation:
There is no shade like a mother, no resort-like a mother, no security like a mother, no other thing as dear as Mother!
 
Your life story reads like a real page-turner, Pramod! You have been through ups and downs, just like the balance and trials we see around us every day in nature. You are one of God's beautiful creations and should celebrate the life you live. It's a journey you can be proud of.

( जीवन की कहानी का पाठन एक वास्तविक पृष्ठ-पलटने  की तरह है| उतार-चढ़ाव से गुज़रता  हुआ, ठीक उसी तरह जैसे संतुलन और परीक्षण अपने आस-पास प्रकृति में हर दिन दिख जाता हैं। जीवन  भगवान की खूबसूरत रचनाओं में से एक हैं और जो जीवन हमें जीना है उसका उत्सव मनाना चाहिए। यह एक ऐसी 
यात्रा है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं)




मेरा जीवन है निर्झर की तरह
लहरों संग बहता हुआ  ऊपर नीचे
प्रकृति में  होता है जैसे प्रतिदिन
आशा और  निराशा के  संतुलन जैसे
सब मिल कर बना जीवन अतिसुन्दर
  कीर्ति और उत्सव का   
संतुलन 
 बहता हुआ लहरों की तरह ऊपर नीचे

My life is like a cold 
 Flowing up and down with the waves 
 In nature like everyday 
 Hope balances despair 
 Life made all together beautiful Of fame and celebration The balance
 
 
 
 

Friday, 17 April 2020

आवाज़ आई कि  घर में रहो और स्वस्थ रहो 
नहीं तो कोरोना  के गिरफ्त में आओ और दुख झेलो 
लोगों ने आवाज़ सुनी और घरों  में रहनें लगे 
और ब्यस्त रहने के अपने तरीक़े ढूड़नें लगे
 कुछ ने  किताबें पढ़ी  और आराम किया, 
दूसरों ने  कला बनाई और व्यायाम किया, 
कुछ अपनी छाया से मिले, श्रृंगार और नृत्य किया
कुछ ने ईश्वर से प्रार्थना की  और  ध्यान किया 
इस तरह  लोग अपने घरों में रहना सीख गए
और धीरे धीरे कोरोना के कहर  से मुक्त  हुए 
कुछ अज्ञानी जो घर में नहीं रहे वे लुप्त हुए               
और पीछे अपने सुन्दर और सुघड़ पृथ्वी छोड़ गए 
सारे  प्रतिबंध  और  नियंत्रण    अब हट चुके  थे   
और लोग   फिर  से  मिलनें  और जुड़ने लगे  थे 
 कोरोना से हुए नुकसान ने सबको दुखी किया 
 विकास के विकल्पों का खोज फिर शुरू हुआ  
 
 
के खेलों  का कुछ ने इज़ाद किया  

और होने के नए तरीके सीखे, और अभी भी थे। और गहराई से सुना।
कुछ ने ध्यान किया, , कुछ ने । 
।
और लोग अलग तरह से सोचने लगे। और लोग 
ठीक हो गए।
और, अज्ञानी, खतरनाक, नासमझ और हृदयहीन तरीकों से 
रहने वाले लोगों की अनुपस्थिति में, पृथ्वी ठीक होने लगी।
और जब खतरा गुजर गया, और , 
तो उन्होंने अपने नुकसान को दुःखी किया, 
और नए विकल्प बनाए, और नई छवियों का सपना देखा, 
और पृथ्वी को पूरी तरह से जीने और चंगा करने के नए तरीके बनाए, जैसे कि वे ठीक हो गए थे।

Thursday, 9 April 2020

दिशा एक निश्चित कर लो। 
पथ पर उस ओर बढ़े चलो ।|
न हारो  न  थक कर सोओ। 
न  बाधाओं   से  घबड़ाओ||
मंज़िल  स्वयं  मिले  सही|
कर्म  करो  बस कर्म करो||